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जिंदगी हौंसला जब टूटकर चूर हो जाए

जिंदगी हौंसला जब टूटकर चूर हो जाए।
शख़्स कैसे न यहाँ कोई मजबूर हो जाए।।

जिंदा रहूँगा आखिर कब तक इस दुनिया में।
जब दिलो की धड़कन ही दिलो से दूर हो जाए।।
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और सच का मुखौटा पहनकर झूठ बोलतें हो।
ख़ामोश ही रहना जब मय का सुरूर हो जाए।।

फ़रेब करने की अपनी फ़ितरत बदल डालो।
वरना कही ज़माने भर का न ये दस्तूर हो जाए।।
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रंज नहीं की कौन खतावार था सजा किसको।
अफ़सोस की सच बोलना जब कसूर हो जाए।।

वफ़ा का सिला कुछ इस क़द्र मिला की क्या कहे।
साहिल कोई दौलत के नशे में जब मगरूर हो जाए।।
@@@@RK@@@@

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