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जीद-ए-वस्ल

रक़िब ना बनों उल्फ़त के खामख्वाह वस्ल की जीद से_

दुरियों में ही सही लबरेज हैं दिल मोहब्बत से क्या इतनी आराईश काफी नहीं ढलती उम्र की पीड़ से_

-PRAGYA-

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