Site icon Saavan

जीवन चक्र

हर सुबह उठकर भागता हूं,

मैं सब के लिए सुख कमाने,

हर शाम घर लौट आता हूं,

मैं सबका हिसाब चुकाने,

बिता दिये हैं अनगिनत दिन

मैंने और बे-हिसाब ये रातें

मगर मुक्त नहीं हुआ अभी

सबका कर्ज चुकाते चुकाते

फर्ज का कर्ज मेरा मुझको

चुकाना ही होगा, अलबता

गम को भुला देता हूं हंसकर

मैं जिम्मेदारि निभाते निभाते

——————————–

Exit mobile version