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जीवन ही है

जग गया हूं प्रभु फिर एक बार
शुक्रिया धन्यवाद कोटि-कोटि बार

हर दिवस का जब होता अवसान
अंदेशा रहता होगा कि न होगा बिहान
तुझ पर भरोसा है भारी होगा कल्याण
सांसों की पुंजी का कहां किसी को ध्यान
पूरी दुनिया दो हिस्सों में है विभक्त
कोविड ननकोविड, न कोई है सशक्त
डर-डर के कर रहे सभी श्रमदान
आदतन किये हैं कैद संकट में है जान
कुछ भुक्तभोगी मूक दर्शक है बने
पर के खातिर अपना प्राण क्यूं तजें
इक दृश्य नजर आया-क्या है प्रलय?
चेता न संसार इसी तरह होगा विलय
कोयल की कूक कल भी थी आगे भी रहेगी
डर है मानव की गिनती विलुप्त प्रजातियों में होगी
कुछ न घटेगा विश्व से शोर हटेगा
संसार में अत्यधिक फैला प्रदूषण घटेगा
प्रकृति फिर से नई नूतन सजेगी
हरियाली की छटा विश्वब्यापि लगेगी
फैलाव की इक सीमा फिर सिकुड़न ही है
इसी यात्रा का नाम शायद जीवन ही है

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