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डर के साये में

डर के साये में खुद को दबाये बेटियाँ रहती हैं,

बहुत कुछ है जो खुद ही छुपाये बेटियाँ रहती हैं,

अपने को अपनों से पल-पल बचाये बेटियाँ रहती हैं,

होठों को भला किस कदर सिलाए बेटियाँ रहती हैं,

कहीं कन्धे से कन्धा खुल के सटाये बेटियाँ रहती हैं,

कहीँ नज़रों को सहसा क्यों झुकाये बेटियाँ रहती हैं॥

– राही (अंजाना)

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