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तुम्हे है दूर जाना

उठो पथिक तुम्हे है दूर जाना,

नदिया, सागर, पर्वत के पार जाना,

ऊँची-नीची  डगर से मत घबराना ।

कितने ही चट्टान हो पथ में,

लहरो ने है कब हार माना,

बढ़ाते जाना और बढ़ते ही जाना,

जीवन जीना उसी ने जाना ।

अँधियारे पथ में है दीपक जलाना,

बंजर भूमि में है फूल उगाना ,

तूफानो का है सागर में आना-जाना,

नाविक ने कब है हार माना ।

जब ठान लिया कुछ करना है,

सोना से कुन्दन बनना है,

फिर तपने से क्या डरना,

गन्तव्य पथ की बाधाओं को,

हँसते-हँसते पार करना ।

उठो पथिक तुम्हे है दूर जाना ।।

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/07/08

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