तुम होते तो शायद
- **तुम होते तो शायद और बात होती**
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- सहर तो अब भी होती है, सूरज अब भी निकलता है फलक़ पर,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती,
- दिन तो अब भी कट जाता है रोजमर्रा की चीजें जुटाने में,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती ll
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- शामें अब भी आती हैं मेरी दहलीज को छूने,
- अब भी ढलता हुआ सूरज मुझसे मिलकर जाता है,
- जुगनू अब भी भटकतें हैं मेरे बागीचे में,
- तारे अब भी रात भर यूं ही पहरे पे होते हैं,
- चांद अब भी इक रास्ता ढूढता है गुज़र जाने के लिये,
- ये मंज़र बेनज़ीर है, सब कहते हैं, मैं मानता हूं,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती l
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- खिड़कियों से छन-छन कर अभी भी रोशनी आती है,
- मेरे कमरे में रखा आईना चमक सा उठता है,
- इक मुश्क सी अब भी बिखर जाती है फिज़ाओं में,
- मेरा घर अब भी सजा रहता है किसी की खातिर,
- हवायें अब भी मुझे छूती हैं तो तुम महसूस होते हो,
- ये सब कहते हैं कि मैं ज़िंदा हूं मगर ना जाने क्यों,
- मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती l
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- तुम्हारे खतों की तहरीर मुझे अब भी सताती है,
- वो दीवाने जज़्बात मुझ से अब भी छुप-छुप कर मिला करते हैं,
- गज़लें अब भी मेरी डायरी से निकलकर मेरे कमरे में टहलती रहती हैं,
- मेरा घर अब भी किसी की यादों में डूबा रहता है,
- मुझे अब भी मुलाक़ात के वो लम्हें बुलाते हैं,
- वो गुज़रा हुआ कल काफ़ी लगता है मेरे जीने के लिये,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती l
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- ज़िन्दगी अब भी किसी मोड़ पर बैठी है शायद,
- उम्र रेत की मानिन्द फिसलती जा रही है,
- सांस अब भी आती है, दिल अब भी धड़कता है,
- अब भी जीने का वहम बाकी है कहीं मुझमें,
- और क्या चाहिये आखिर ज़िन्दगी से मुझे,
- यूं ही गुज़र रही है, एक दिन गुज़र ही जायेगी,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती ll
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- -Er Anand Sagar Pandey