अरमानों के पंख लगा मैं,
नभ- तल में जो विचर रही,
क्या तुम उसका प्रतिफल हो,
प्रेम पाश में बाँध रहे क्या,
प्रणय का मूक आमंत्रण हो,
तुम आकुल मन की व्यथा को,
लयबद्ध कर जो स्वर दे दो,
मैं रागिनी बन मन्त्र-मुग्ध कर दूँ,
तुम बूँद-बूँद श्वॉसो में जीवन भर दो,
मैं घटा बन बरस पुलकित कर दूँ,
तुम पग-पग काँटे चुन दो,
मैं हरियाली बन पथ सिंचित कर दूँ,
तुम एक उम्मिद की किरण दे दो,
मैं ऊषा बन उजियारा कर दूँ,
तुम मौन यूँ हीं आमंत्रण दो,
मैं स्वीकृत कर समर्पण कर दूँ ।।