एक तू ही है
जो नहीं है
बाकि तो सब हैं
लेकिन…
तेरे न होने का वज़ूद भी
सबके होने पे भारी है
मुझे भी जैसे
तुझे सोचते रहने की
एक अज़ीब बीमारी है।
नहीं कर सकता आंखे बंद
क्योंकि तेरा ही अक्ष
नज़र आना है उसके बाद
तब तक
जब तक मैं बेखबर न हो जाऊ
खुद के होने की खबर से
और अगर आंखे खुली रखूँ
तो दुनिया की फ्रेम में
एक बहुत गहरी कमी
मुझे साफ नज़र आती है
जो बहुत ही ज्यादा
चुभती चली जाती है
क्योंकि उस फ्रेम में मुझे
तू कहीं दिख नहीं पाती है।
-KUMAR BUNTY