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तो अच्छा हो

ज़रा कुछ देर रहमत हो सके तो अच्छा हो ,

ज़रा मन शांत होकर सो सके तो अच्छा हो.

 .

ख़तो के ज़ाल में उलझे हुए है मीर हम , 

ज़रा कुछ देर खुद में खो सके तो अच्छा हो . 

 .

गुज़र गया है मुसाफिर फिर शहर से तेरे , 

तेरा कुछ राब्ता दिल हो सके तो अच्छा हो . 

 .

न कह पाया जुबा से हाल दिल का अब तलक, 

ज़रा अब हर्फ़ मेरे कह सके तो अच्छा हो. 

 .

सुना है हिज़्र के किस्से ,विरह की दास्ताँ समझी, 

ज़रा अपना भी दिल अब रो सके तो अच्छा हो

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