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दर्द-ए-गम

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दर्द-ए-गम

इस दर्द-ए-गम का, अपना ही मंज़र है,

रात तो आती है, पर नींद नहीं आती 

शून्य का एहसास है, पर समझ नहीं आती 

जिंदगी तो चलती है, पर जान नहीं होती 

एक घुटन सी होती है, पर नज़र नहीं आती 

दिल पल-पल रोता है, पर आँख नहीं बह्ती 

रूह तक तड़प जाती है, पर आहट नहीं होती 

इस दर्द-ए-गम की, कोई दवा नहीं होती 

इस नामुराद बीमारी में, दुआ भी काम नहीं आती 

यूई को अब हर पल,

मौत का इंतज़ार रह्ता है,

कम्बख़्त वोह भी नहीं आती 

                                                            …… यूई

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