नन्हा सा बेटा बोला,
लिपट कर मेरे पैर।
आज ले चलोगे पापा,
संग अपने सैर।
कब जाते हो,
कब आते हो,
पता ही नहीं चलता,
लगाते हो बड़ी देर।
ना चलेगा कोई बहाना,
थक गया हूं मैं,
या फिर मुझे है जाना।
मुझसे प्यार है,
या कोई बैर।
ले चलोगे मुझे,
संग अपने सैर।।
उस अबोध को,
मैं कैसे समझाऊं।
दर्द अपना उसे,
मैं क्या बताऊं।
रोटी की जद्दोजहद में,
इस भागदौड़ बेहद में,
परिवार के लिए,
समय कहां से लाऊं।
कर्म देखूं तो,
कर्तव्य छूटता है।
कर्तव्य देखूं तो,
कर्म कैसे बचाऊं।
अपना दर्द,
मैं किसे बताऊं।।
देवेश साखरे ‘देव’