देख कर खामोश है, शहर मेरा.
इतनी भी क्यां गिला तेरा.
जब छोड़ कर आये मंजिल तेरी.
सब चाह रहे दिल जवां मेरा.
बड़े नाजुकाना संबंध मेरे मौकिल के.
ऐसे ही नही दिल लगाना तेरा.
लिख आये पत्थरों पर नाम साजन.
ऐसे कहाँ होता साकी प्यार जताना तेरा.
तेरी खूबियां अवध क्या जाने दिल जलाना तेरा.
अवधेश कुमार राय “अवध”