लङता अंधेरे से बराबर
नहीं बेठता थक हारकर
रिक्त नहीं आज उसका तूणीर
कर रहा तम को छिन्न भिन्न
हर बार तानकर शर
लङता अंधेरे से बराबर
किया घातक वार बयार का तम ने
पर आज तानकर उर
खङा है मिट्टी का तन
झपझपाती उसकी लो एक पल
पर हर बार वह जिया
जिसने तम को हरा
रात को दिन कर दिया
मिल गया मिट्टी मे मिट्टी का तन
अस्त हो गया उसका जीवन
लेकिन उस कालभुज के हाथों न खायी शिकस्त
बना पर्याय दिनकर का वह दीया
जिसने तम को हरा
रात को दिनकर दिया