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दुआओं की महफ़िल सजाते हैं

हर एक की अपनी मजबूरी है
पर उसको समझना जरूरी है।
जरूरतें बहुत है, पर साधन सीमित है
आकांक्षाओं की परिधि तो असीमित है।
समझना पहले है, समझाना अगली कड़ी में शामिल है,
बनाने वाला ही जानता होगा कौन किसके काबिल है।
बहुत सी बातें अनकही रह ही जाती हैं
कहां हर ख्वाहिश पूरी हो पाती है।
उचित-अनुचित का फैसला उसी पर छोङ देते हैं
बनाने वाले की फितरत पे क्यूं तोहमत लगाते हैं
चुभन तभी होती है जब कांटों से टकराते हैं
कहा यही जाता, सब करनी का फ़ल खाते हैं।
अच्छा करने से पहले अच्छा सोचने की आदत लगाते हैं
चलो दिल से दुआओं की महफ़िल सजाते हैं।

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