माँ तुम्हारे चरणों को
धोता है हिन्द सागर।
बनके किरीट सिर पे
हिमवान है उजागर।। माँ…..
गांवों में तू है बसती
खेतों में तू है हँसती
गंगा की निर्मल धारा
अमृत की है गागर।। माँ….
वीरों की तू है जननी
और वेदध्वनि है पवनी
हर लब पे “जन-गण”
कोयल भी ” वन्दे मातराम् ”
निश-दिन सुनाए गाकर।। माँ….
विनयचंद ‘बन वफादार
निज देश के तू खातिर।
तन -मन को करदे अर्पण
क्या है तुम्हारा आखिर?
माँ और मातृभूमि पर
सौ-सौ जनम न्योछावर।। माँ…