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दोस्त

दोस्त
इक अजीब सा रिश्ता
पनपने लगा हम दोनों के बीच
इक दूजे के दर्द को
महसूस सा करने लगे
कुछ खट्टी कुछ मीठी सांसों का
बँटवारा भी रजा से करने लगे
कुछ प्यार से कम था
कुछ प्यार से ऊपर
सवालों के उलझे धागों को
सुलझाने में लगा रहता वो
न अहम न ही कोई ख़ास उम्मीदें
इक खून में भी कहा ऐसा रिश्ता
न कोई शिकवा न कोई रंजिश
मुझे इस दोस्ती पर नाज़ रहा
इस रिश्ते ने बचाया
दर्द की बूंदों से
दर्द की बारिशों से
सारी उम्र देता रहा तस्सलियां,
मेरे ही अंदर का इक और” मैं ”
राजेश’अरमान’

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