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धुंधले आईने में

धुंधले आईने में कोई अक्स नज़र नहीं आता
वक़्त की सुईया पकड़ने से वक़्त ठेहर नहीं जाता

वो चिरागों सा रोशन कभी एक नूर सा था
क्या हुआ शख्स अब वो नज़र नहीं आता

कहता रहा रहने दो रिश्तों को पर्दों में
कुरेदने से सच रिश्तों का बदल नहीं जाता

उसकी हसरत थी महफूज उसके हाथों में
हाथों की जिन लकीरों को कोई बदल नहीं पाता

कौन देखेगा इन हवाओं में मुड़ के ‘अरमान’
साथ दुनिया के आखिर वो क्यों चल नहीं पाता

धुंधले आईने में कोई अक्स नज़र नहीं आता
वक़्त की सुईया पकड़ने से वक़्त ठेहर नहीं जाता
राजेश ‘अरमान’

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