अपने नन्हें कदमों से दिन भर
छन छन करती फिरती है
कभी इधर तो कभी उधर वो
उछलती कूदती रहती है
बंधन मुक्त वो पंछी की भाँति
सीमाओं को न जानती है
अपने घर से दूसरे के घर
दिन भर दौड़ लगाती है
अपने पराये की भी समझ न
उसको अभी न बिलकुल है
अपनी चीज़े उसकी चीज़ें
सबको मिलाये रहती है।।