धराशाई हो जब गिरा, वो धरा पर।
जां न्यौछावर कर गया वसुंधरा पर।
तेरी शहादत से महफूज़ मूल्क मेरा,
नाज़ हमें तेरे लहू के हर कतरा पर।
बात जब भी हिफाज़ते-वतन की हो,
टूट पड़ता है जवान, हर खतरा पर।
अकेला घिरा, वो दुश्मनों पर भारी है,
ना खौफ, ना शिकन उसके जरा पर।
पीछे हटना तो हमारे खून में ही नहीं,
लहू की आखरी बूंद तक वो लड़ा पर।
गाड़ ध्वज तिरंगा, शत्रुओं के वक्ष पर,
सर ऊँचा किया, वो खुद गिरा धरा पर।
देवेश साखरे ‘देव’