न दूध न रोटी के वो टुकड़े नज़र आते हैं राही अंजाना 6 years ago न दूध न रोटी के वो टुकड़े नज़र आते हैं, मेरे शहर में पाव और पीज़ा के रगड़े नज़र आते हैं, न मेरे गाँव की हवा न वो छप्पर छावँ नज़र आते है, ऊँची मीनारों के नीचे दबे संस्कृति के पाँव नज़र आते हैं।। राही (अंजाना)