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परिंदा

गमों के आसमान का तू परिंदा क्यों है,
झूठी उम्मीदों की ज़मी पर तू ज़िंदा क्यों है,

सिकोडे हैं हौंसलों के तू क्यों पर अपनें,
उम्मीदों पर न टिके तू वो वाशिंदा क्यों है।।
राही (अंजाना)

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