रहने को बहुत बड़ा है लेकिन
रहने में क्यों डर लगता है
एक अपने ही घर में क्यों बोलो,
तुमको सब कुछ खलता है।
कहने को तो सब चलता है
सूरज रोज निकलता है
एक तेरी ही आँखों में क्यों बोलो,
आँसू का पानी पलता है।।
बढ़ने की चाहत में जो पल
हाथों से रोज फिसलता है
एक तेरी ही मर्ज़ी से क्यों बोलो,
समय का पहिया चलता है॥
राही अंजाना