पूस गया ठण्ढी गई
छाया नव उल्लास।
कर सेवन त्रिवेणी तू
आया पावन मास।।
आया पावन मास
माघ अतिसुखकारी।
स्नान ध्यान पूजन
कथा करे अपहारी।।
कथा करे अघहारी
विनयचंद नाम जपा कर।
पा मानव तन निर्मल
तिल गुड़ कुछ दान कर।।
कम्बल स्वेटर और रजाई
दीनन को दान करो रे भाई।
सेवा करो सदा दुखियों की
सदा सहाय रहे रघुराई।।