Site icon Saavan

पिंजरबद्ध

पिंजरबद्ध ना लिख सकूंगी
अंकुश होगा सिर पर तो फिर,
भावों को कैसे व्यक्त कर करूंगी
मेरे कवि मन को यदि, उन्मुक्त माहौल मिलेंगे
तभी इस कवि मन में, गीतों के पुष्प खिलेंगे
कहीं भली है बस सुंदर सराहना,
इस अंधी दौड़ की टैंशन से..।

Exit mobile version