लाल ओढ़नी ओढ़ कर,
देखो पलाश इठलाते हैं।
वन में फैली है अग्नि ज्वाला,
ऐसा स्वरूप दिखलाते हैं।
होली आने से पहले ही,
पलाश ने कर ली तैयारी।
लाल रंग के पुष्प खिला कर,
महकाई है वसुधा सारी।
लाल रंग की, प्रकृति ने
सिन्दूरी आभा बिखराई है।
सृष्टि स्वयं ही बता रही है,
ऋतु बसन्त की आई है।
बागों में कोयल आई है,
तुम भी अब आ जाओ ना।
सुर्ख़ पलाश के पुष्पों जैसी,
ख़ुशबू बिखरा जाओ ना।।
_____✍️गीता