जी जला दूँ गीत गाकर
फूंक डालूँ स्वर जलाकर
भेदभावों को मिटा दूँ,
प्रेम भावों को लुटा दूँ।
आँसुओं को सब सुखा दूँ,
सत्य पर नजरें झुका दूँ,
भावनाओं में न बह कर,
लेखनी अपनी उठा लूँ।
ठेस पाऊँ सौ जगह से,
धर्म पथ की ही वजह से,
पर अडिग चलता रहूँ,
भाव निज लिखता रहूँ।
शांति हो कोलाहलों में
लेखनी हो सांकलों में
हो मुखर कहता रहूँ मैं
बात सच लिखता रहूँ मैं।