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बड़ी होती है जब (दहेज-प्रथा)

बड़ी होती है जब किसी पिता की पुत्री ।
वर ढूँढने जब वो निकलते है सज्जनों की बस्ती ।
सौभाग्य वश सज्जन भगवान राम के सेवक होते है ।
इसलिए पिता प्रसन्नता से कन्यादान करते है ।
धन्य होती उनकी भाग्य जिनके वर दहेज की माँग न करते ।
स्वीकृति से ही तो मिल जाती है सारा-जहां ।
फिर ये दुनिया क्यूँ पिता को दहेज के लिए प्रताड़ित करती ।
कन्यादान जो करते है वो क्या वर को कुछ नहीं देते है ।
अंधी दुनिया सारी अंधे है दहेज के भूखे नर ।
जो लोभवश पुत्र पालते है वो पुत्र को मंडी में भाव लगाते है ।
नर्मदा, सावित्री के जग में कन्या का उपहास होता है ।
विवाह-भवन में तुक्ष लोभ के कारण कन्या का सिन्दूर मांग हवा उडा़ लेती है ।
देखती है जहां ये नजारा फिर भी ये लोग दहेज को वरदान समझते है ।
दहेज को परिभाषित करना तुक्ष नरों का काम नहीं ।
ये तो संत-योगियों का रहस्य है जिस कोई विरला ही जानता है ।
कवि विकास कुमार

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