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बयां करती है

बिस्तर की सलवटें, शबे-हाल बयां करती है।
भीगा सिरहाना, हिज़्रे-मलाल बयां करती है।

बेशक लाख छुपाओ, ग़मे-जुदाई का दर्द लेकिन,
बेरंग सा चेहरा, बेनूर हुस्नो-जमाल बयां करती है।

मुस्कुराहट के पीछे, गम छुपाने का हुनर आता है ‘देव’,
फिर भी तसव्वुर तेरी, महबुबे-खयाल बयां करती है।

देवेश साखरे ‘देव’

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