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बरपने लगा

बरपने लगा शोर कुछ अपने पाले सन्नाटों में
कुछ उधर भी है खलबली उनके दिए काँटों में
माना की कोई मरासिम नहीं उनके सायों से ,
अब भी मौजूं है मगर हर किसी की आहटों में
राजेश’अरमान’

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