बरसात की ऋतु Satish Chandra Pandey 3 years ago अब धीरे-धीरे समेटने लगी है वह अपने साजो – सामान को, तपती गर्मी से झुलसती धरती को नहलाने आयी थी, प्यासे प्राणियों को खूब पानी पिला गई। धरती पर पड़े बीजों को उगा गई। ये बरसात की ऋतु थी जो तन मन को नहला गई। धरती को महका गई।