बात करते हैं मगर चेहरा छिपा लेते हैं लोग,
अक्सर खुद पर ही पेहरा लगा लेते हैं लोग,
आते क्यों नहीं भला खुल के सामने सबके,
जो दर्द भी दूजे के अपना बना लेते हैं लोग,
फूल के मानिंद जब महकते रहते हैं यूँहीं,
तो क्यों न भवरों से अपना रिश्ता बना लेते हैं लोग।।
– राही (अंजाना)