Site icon Saavan

बिखरे ख्वाबों को

बिखरे ख्वाबों को बारहा चुनता क्या है
ज़ख़्म तो जख्म है बारहा गिनता क्या है

इन हवाओं से कब कोई मुड़ के देखा
सेहरा की रेत पे बारहा लिखता क्या है

गैर हो न सके, न अपनों में रहे
देख तजुर्बों से तुझे दिखता क्या है

वो बैठा रहा सच की बाँहों में
देख सही तेरे बाजार में बिकता क्या है

यही दुंनिया के दस्तूर रह गए ‘अरमान’
डूबते चाँद को बारहा तकता क्या है

बिखरे ख्वाबों को बारहा चुनता क्या है
ज़ख़्म तो जख्म है बारहा गिनता क्या है
राजेश’अरमान’

Exit mobile version