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बेटी

आँखों ही आँखों में जाने कब बड़ी हो जाती है
बिन कुछ कहे सब कुछ समझ जाती है
जो करती थी कल तक चीज़ों के लिए ज़िद
आज वो अपनी इच्छाओं को दबा जाती है
अब कुछ भी न कहना पड़ता है उससे
सब कुछ वो झट से कर जाती है
एक गिलास पानी का भी न उठाने वाली
आज पूरे घर को भोजन पकाती है
कभी भी कहीं भी बैग उठा कर चल देने वाली
आज वो अपना हर कदम सोंच समझ कर बाहर निकालती है।।

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