…..बढ़ रहा है क्यों–??
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प्यार दिखता नही,नफ़रत घटती नहीं
तक़रार का अंगार बढ़ रहा है क्यों…?
इंसानियत मिलती नहीं,हैवानियत मिटती नहीं
संस्कारों का बिखराव बढ़ रहा है क्यों..??
क्या चाहता मानव वर्तमान का–
क्यों पर्याय बन चुका हैवान का
कर रहा क्यों मानवता तार-तार
व्यवहार को औपचारिकता बनाकर-
आपसी टकराव बढ़ रहा है क्यों…??
दिशाहीन सफर,ज्ञानहीन बुद्धि–
फिर,उपलब्धियों का अर्थ क्या है?
बाबाओं की भरमार,कृपा का बाज़ार
सबकुछ अर्थ का अनर्थ हो गया है
मार्ग में भटकाव बढ़ रहा है क्यों…??
तनमन दिखाऊ, ज़िन्दगी बिकाऊ-
कर्म का मोल कहाँ फेंका गया है–?
झूठ का बोलबाला,सच का मुँह काला
सच्चेपन का मोल कहाँ आँका गया है
आडम्बर का बहाव बढ़ रहा है क्यों….??
मतलबी लिबास में चापलूस रहते-
स्वार्थपूर्ति के हथकंडे अपनाते
दिल के मेल कहाँ–सिर्फ हाथ मिलाते
बंधनो में अलगाव बढ़ रहा है क्यों…??
नीति, रीति,की गति विपरीत–
हक़ जमाने को केवल प्रीत
विचार–सोच–और मानसिकताएं
खाली खाली सी आकांक्षाएं
हँसी थी कभी -खुशियों की साक्षी
अब,उपहासों का चाव बढ़ रहा है क्यों..??
बदल गए है सभी के दिल
परिवर्तन के चक्कर में
ना वो समां, न महफ़िल
परिवर्तन के चक्कर में
ना वो गीत,ना सुर, न साज़
परिवर्तन के चक्कर में-दूर हुए यथार्थ
निज-सोच का भाव बढ़ रहा है क्यों…??
परिवर्तन की लहर एक और चले
फिर हो जाये सबकुछ बदले-बदले
जो गुम हो चुका ,फिर वो हमें मिले
वर्तमान समय-सिंधु में मची है उथल-पुथल
फिर भी — न जाने–/
उम्मीद का नाव बढ़ रहा है क्यों..??
—– रंजित तिवारी
पटेल चौक,कटिहार (बिहार)
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सम्पर्क–8407082012