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भौंरा

तेरी खुली जुल्फों से मैं एक सवाल करता हूँ
चाहत है तेरी कौन ये दरखास्त बारंबार करता हूँ |

लगाए थे तूने आज तक कई पहरे सोच पर मेरे
मनाया तुझे कई बार पर तू मानी न कहने पर मेरे |

जिन आंखों में शर्म थी, अब वो चेहरा भी बेपर्दा है
घुट – घुट कर जीने से अच्छा, तेरा ये नया मुखड़ा है |

आज तुझे देखकर जिंदगी जीने का मन है भौरे का
फूल खिला है सालों बाद, पुष्परस करा दे आशिक का |

चाहने लगा है तुझे इस कदर कि अब इजहार करता है
फिर से तुझे दिल से एक बार आज सलाम करता है |

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