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भौर

बाला घट भरने चल पड़ी
भौर की लालिमा नभ मे बिखर पड़ी
पगो से रोंदते हुए ओंस की बूँद
बाला पनघट की ओर मुड़ चली.

रस्सी खींचती सुकोमल हाथों से
बिन कहे ही कहती बातें आँखों से
हार गया तुम्हारी मनमोहनी चालो से
सुंदरता का बखान कैसे करू मै तुछ बातों से.

घट सर पर रख मंद- मंद मुस्काए
नखरे करें और खूब इतराए
कमरिया तेरी लचकती जाये
अधजल गगरी छलकती जाये.

देखता उसे मै रह गया
गाँव की गलियों मे वो खो गई
कुछ डग भरे उसकी ओर
फिर ना जाने कहाँ घुन्ध मे वो ओझल हो गई.

ध्यान उसका आता बार बार
उस एहसास को कैसे भूलूँ
काश ! ये मनोरम दृश्य
मै हर रोज ही देखूँ.

अर्थ :-
मनोरम -प्यारा
अधजल -आधा भरा घड़ा
रोंदते -दबाते, कुचलते

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