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मज़हब न जात पात का अब फ़ासला रहे

मज़हब न जात पात का अब फ़ासला रहे।
मैं रहूँ न रहूँ मगर ये काफ़िला रहे।।

हिन्दू हो मुस्लिम हो सिख हो ईसाई।
सबके बीच प्यार का ये सिलसिला रहे।।

करे न गुमान कोई अपनी बुलंदी पर।
जमीं के साथ कोई ऐसा रिश्ता रहे।।

कोई ऐसा इंसान मेरी जिंदगी में भी हो।
जो मुझको मेरी गलतियाँ भी बताता रहे।।

सीखा दे वो सबको नेकी इंसानियत का धर्म।
“गौरव” इस जहान में ऐसा कोई मसीहा रहे।।
‪#‎_gaurav‬

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