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**महिला प्रताड़ना**

कहते हो मैं मर्द हूँ
और औरत पर हाथ
उठाते हो
मर्जी हो या ना हो
जबरन बातें मनवाते हो
कभी जलाते हाथ तो कभी
फेंकते एसिड हो
सीना तान के फिर तुम
मर्द कहाये फिरते हो…

क्या गलती है मेरी जो
हमको औरत का जन्म मिला !
मत भूलो
तुम्हारा अस्तित्व भी औरत की
कोख में पला
तुमको जन्म देने वाली,
तुमको साजन कहने वाली,
तुमको राखी बांधकर
प्यार से लड़ने वाली,
सब औरत है, सब बेटी हैं
तुमको पापा कहने वाली…
जो लक्ष्मी जेब में रखते हो
जिनकी पूजा करते हो
नौ दिन व्रत रखकर जिसका
तुम वंदन अर्चन करते हो
सब नारी हैं, सब पूजनीय हैं
औरत का हर रूप
सम्माननीय है वंदनीय है….

काव्यगत सौन्दर्य:-

यह कविता मैंने महिला प्रताड़ना की निंदा वा औरत के अस्तित्व वा अहमियत समझाने के लिये लिखी है…
नारी का हर रूप वंदनीय वा सम्माननीय है जहाँ नारी का सम्मान नहीं होता वहां कोई भी देवता निवास नहीं करता..
साथ ही वहाँ हमेशा दरिद्रता छाई रहती है.

“घरेलू हिंसा अपराध है”

नारी के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार की हम घोर निंदा करते हैं…

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