मात खा गए हम आज
ज़िन्दगी की आरज़ू में ।
मौत भी ना नसीब हुई
इश्क की आरज़ू में ।
समझते थे प्यार को
खूबसूरत ग़ज़ल हम
दर्द ही पाये हर कदम पर
जीते थे बस तेरे ही नाम पर ।
हम भी ना रोते अगर
उनकी तरह रिश्तों में दिमाग़ लगाते।
हर सितम को दिल जीते रहे
दर्द को आंसुओं में पीते रहे ।
धोखे को भी वफ़ा माना
प्यार किया इतना के तुझे खुदा माना।
ना आते झांसे में अगर तो
क्यूँ बहाते आखों से झरने हम यूँ ।