मुक्तक छंद – वार्णिक (मनहरण घनाक्षरी)
सामांत-आई
पदांत- है
८८८७-१६-१५
पहले जो पढने में गदहे कहलाते थे
उनकी भी दिखती आज नही परछाई है !
नवयुग के बच्चे देते एक भी जवाब नही
पता नही चलता कैसी करते पढाई है !!
लाज और लिहाज सब दूर हो गये सभी
बाप के ही सामने में करते ढीठाई है !
कहत मतिहीन कवि डांट जो पिलाई तो
बेटी ने भाग घर से नाक कटवाई है ||
पढते भी कैसे जब शासन प्रशासन ने
बिना पढै पास करै बीणा उठाई है |
काम के अभाव में बेरोजगारी बढ गई
डिग्रीधारी को महंगी हुई पाई पाई है ||
उपाध्याय…