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मुक्तक

तुम जो मुस्कुराती हो नजरें बदलकर!
नीयत पिघल जाती है मेरी मचलकर!
चाहत धधक जाती है जैसे जिगर में,
हर बार जुस्तजू की आहों में ढलकर!

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

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