मुस्कुराना तो हम भी नहीं छोड़ेंगे। मोहन 2 years ago पैर थक गए हैं तेरी ठोकरों से, ए जिंदगी! मगर कहता! हौसला इन पैरों का, ज़फ़र तो हम भी नहीं छोड़ेंगे। और तेरे सितमों का कहर, पहाड़ ही क्यों ना बन जाए, मुस्कुराना तो हम भी नहीं छोड़ेंगे। — मोहन सिंह मानुष