कविता- मेरा मित्र
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मेरा मित्र-
कमी बताया करता है,
जब भी मिला हूं उससे,
पढ़ कर मेरे चेहरे को,
हकीकत बताया करता है|
मेरी गलती –
खुद न समझ सका,
दे न सका धोखा ओ,
जो था वही दिखा सका,
उसे सच दिखाने की बिमारी है
सख्त पहरेदार मेरा,
गुनाह करने से डरता हूं,
चेहरा कैसे दिखाऊंगा,
सत्य हठी निष्पक्ष मित्र मेरा,
डरता नहीं, सत्य ही दिखाएगा|
साफ़ रहो, बेदाग बनों,
स्वच्छ छवि, इंसान बनों,
सुबह सुबह दर्पण से डरना सीखों,
चरित्रहीन ना ,चरित्रवान बनो
माना बेशर्म बनकर,
जीवन गुजारोंगे,
डरो यार वजूद से,
खुदा को कैसे शक्ल दिखाओगे|
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**✍ऋषि कुमार “प्रभाकर”——