Site icon Saavan

मेरे कालिदास

गुंजन है धड़कनों में!

यह किसके पदचापों की आवाज है?
क्या यह तुम हो?
मेरे कालिदास!
जिन्हें बंद आंखें भी पहचानती हैं।
क्यों आए अचानक आज इतने चुपचाप?

मेरे मन की आंखें
और धड़कनों के कान
तुम्हारी हर आहट
पहचानते है।

मेरे कालिदास!
कहा था ना मैंने!
जा तो रहे हो,
शास्त्री जी बन वापस जरूर आओगे
विश्वास है मेरा।

और अब की बार जब आओ
कभी ना वापस जाने के लिए आना।

तुम्हारी आहट सुन रही हूं मैं,
विश्वास की जीत का नजारा
बंद आंखों से दिख रहा है मुझे।
इंतजार रहेगा तुम्हारा कालिदास!

तुम्हारी विद्योत्तमा

निमिषा सिंघल

Exit mobile version