मैं अंधभक्त बना रहा
चीख पुकार को सुनता रहा
एकता का गुणगान करता रहा
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई भाई भाई करता रहा
खून के छींटों पर आंख मूंद चलता रहा
मैं अंधभक्त बना रहा मैं अंधभक्त बना रहा
अपने अंदर का ज़मीर मैं मारता रहा
डर भय से गड़गड़ा कर कांपता रहा
घड़ीयाली मगरमच्छ आंसू यूं ही बहाता रहा
वेगुनाह के लाश पर फूलों का गुच्छा चढ़ाता रहा
मैं अंधभक्त बना रहा मैं अंधभक्त बना रहा
आस पड़ोस की घटनाओं से मैं सहमा रहा
स्वच्छ सुंदर भारत का गला घोंटता रहा
दुनिया के दुःख दर्द को यूं ही मैं सहता रहा
मैं अंदर के डर को मैं सुबह शाम पालता रहा
मैं अंधभक्त बना रहा मैं अंधभक्त बना रहा
खून की छींटों में अपनों को मैं खोता रहा
चाकू के धार को चुप चाप सहता रहा
हिंदू मुस्लिम पर दिन रात आरोप गढ़ता रहा
बेदर्द खूनी हत्यारों को हौसला अफजाई करता रहा
मैं अंधभक्त बना रहा मैं अंधभक्त बना रहा
महेश गुप्ता जौनपुरी