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मैं अकेला ही चलूँगा

मैं अकेला ही चलूँगा ।

शीश पर तलवार मेरे,
पाँव में अंगार मेरे,
या काटूँ या फिर जलूँगा ।
मैं अकेला ही चलूँगा ।।

तुम न मेरा साथ देना,
हाथ में मत हाथ देना,
अब सहारा भी न लूँगा ।
मैं अकेला ही चलूँगा ।।

दीन दिखलाना नहीं है,
हाथ फैलाना नहीं है,
सब अभावों में पलूँगा ।
मैं अकेला ही चलूँगा ।।

वेदना दो मैं सहूँगा,
“हर्ष है”, दुख में कहूँगा,
इस तरह तुमको छलूँगा ।
मैं अकेला ही चलूँगा ।।

घाव अपने कर गए हैं
भाव मन के मर गए हैं
बन गया पत्थर, गलूँगा ?
मैं अकेला ही चलूँगा ।।

लड़ सकूँ तूफान से मैं,
भिड़ सकूँ चट्टान से मैं,
वज्र के जैसा ढलूँगा ।
मैं अकेला ही चलूँगा ।।

मैं गया जग छोड़कर यदि,
स्नेह तुमसे तोड़कर यदि,
अत्यधिक ‘सौरभ’ खलूँगा ।
मैं अकेला ही चलूँगा ।।

  1. – सुरेश कुमार ‘सौरभ’
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