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मैं ऐसा होता काश…..

सोचता हूं, मैं पानी होता काश,
तुम्हारे प्यासे होठों की बुझाता प्यास।
सोचता हूं, मैं हवा होता काश,
हर पल अपने स्पर्श का दिलाता एहसास।
सोचता हूं, मैं खुशबू होता काश,
तुम्हारे तन को महकाता मैं बेतहाश।
सोचता हूं, मैं खुशी होता काश,
ना होने देता तुम्हें कभी उदास।
सोचता हूं, मैं उम्मीद होता काश,
आंखें बंद कर मुझ पर करती विश्वास।
सोचता हूं, मैं मंजिल होता काश,
तो खत्म मुझ पर होती तुम्हारी तलाश।
सोचता हूं, मैं ख्वाब होता काश,
तुम्हारी नींदों में, होता तुम्हारे पास।
सोचता हूं मैं, नहीं कुछ भी, फिर भी,
तुम्हें पाने के बाद ना रही और कोई आस।

देवेश साखरे ‘देव’

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