Site icon Saavan

मैं और तुम

मैं और तुम साथ साथ बड़े हुए
दोनों साथ- साथ
अपने पैरों पर खड़े हुए
तुम्हारी शाखाएं बढ़ने लगीं
पत्तियां बनने लगीं
दोनों एक साथ
जीवन में आगे बढ़े
अपने -अपने कर्मों के साथ्
तुमने जीवन को हवा दी
साँसे दी जीने के लिए
छाया दी बैठने के लिए
कितनों को आश्रय दिया
रहने के लिए
मैंने भी घर बनाया रहने के लिए
नींव डलवाई
दीवाल खिंचवाई
खिड़कियां दरवाज़े लगवाये
फिर घर के फर्नीचर आये
सब तुम्हारे कारण ही
तुम्हारे अंग -अंग को
काट -काट कर
अपने लिए सुविधाएं इकठ्ठा करते रहे
यहाँ तक कि लिखने के लिए कागज़
तुम देते रहे
बिना कुछ कहे
तठस्थ भाव से
ये जानते हुए
कि तुम नष्ट हो रहे हो
तुम्हारी जडे सूख रही हैं
तुम तिल -तिल मरते रहे
कटते रहते
दर्द सहते रहे
आज तुम्हे खोजता हूँ
कहीं नहीं दिखते तुम
शुद्ध हवा की कमी हो गयी
बिना पेंड पौधों की ज़मी हो गयी ।

Exit mobile version