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मैं चीखा- चिल्लया तेरी बातो से ।

वाह रे दुनिया !
मै चीखा–चिल्लया तेरी बातों से।
“हाँ” मै चीख रहा हूँ,चिल्ला रहा हूँ,मेरा कोई औकाद नही किसी पर अवाज उठाने की!
केवल जख्मों के छालों से सदा सुने है,सिसक -सिसक कर सोई है।
गरीबी की मारों से।
मेरा कोई औकाद नही तुम्हारे समाने आने का
केवल तेरी——-
बोली से सुने है दौलत के तलवारो का।
आजकाल कुछ लोग वैसे बोल रहे डर बैठे इनके जुवाओ मे।
कोई मजबुर ही समझेगा गरीबी की हत्यारो को ।
सभा के बीच जब मुँह या ना जुँबा होती पहचान ली जाती है।
गरीबी की औकादो का—-

ज्योति कुमार
मो०९१२३१५५४८१

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